dubsur wrote:
Ritu Bhanot wrote:
आप सबकी बातें सुन मन में एक इच्छा हुई... काश, कुछ कवितायें ही सुन पाती । कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो जातीं और कुछ नयी बात भी सुनने को मिलती...
मगर कॉपीराइट संबंधी रुकावटों के कारण नहीं जानती कि मैं आपसे यह निवेदन कर सकती हूँ या नहीं ।
ऋतु जी,
पाश की कुछ कविताएं मैंने अपनी डायरी में नोट की थीं, आज वह हाथ लग गई। पहले मैं बक़ायदा नोट्स बनाता था। उस समय मैं दुनियादारी के गणित में उलझा नहीं था। अब तो खैर, सब छूट गया। इनमें से एक प्रस्तुत करता हूं। पता नहीं कि यहां पाश की कविता लिखना कॉपीराइट का उल्लंघन है या नहीं, परंतु इतना यह विश्वास है कि यदि पाश आज होते तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं होता।
मेरे पास
मेरे पास बहुत कुछ है
शाम है - बौछारों से भीगी हुई
जिंदगी है नूर में दहकती हुई
और मैं हूं - 'हम' के झुरमुट से घिरा हुआ
मुझसे और क्या छीनेंगे
शाम को किसी दूर-दराज की कोठरी में बंद करेंगे ?
जिंदगी को जिंदगी से कुचल देंगे ?
'हम' में से 'मैं' को निथार लेंगे ?
जिसे आप मेरा 'कुछ नहीं' कहते हैं
उसमें आपकी मौत का सामान है
मेरे पास बहुत कुछ है
मेरे उस कुछ नहीं में बहुत कुछ है।
"पाश"
पाश की कविताएं, जिनसे हम इतने अभिभूत हैं, मूलत: पंजाबी में लिखी गई हैं और हम उनके हिंदी अनुवाद पर चर्चा कर रहे हैं, मैं ताज्जुब करता हूं कि जब अनुवाद में इतनी इतनी ताक़त है तो मूल रचना में कितनी होगी और यह अनुवादक (इस समय नाम याद नहीं आ रहा है) कितना जबरदस्त है।
दीपेंद्र जी,
क्या आपको "सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना" की कुछेक
पंक्तियां याद हैं ? यदि याद हैं तो ज़रूर लिखें।
- आनंद
[Edited at 2007-02-28 14:11]
[Edited at 2007-02-28 14:12]